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एक कवि की प्रेयसी

Nagesh Tejwani
3 min readApr 25, 2020

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एक कवि की प्रेयसी कभी कभी
शायद ऐसी ही दिखती होगी

ग्रीष्म का ज्वार लिए
सूर्य जब तपता होगा
छाँव पाने पल भर के लिए
शायद तुमको तकता होगा

अल्हड तुम्हारी आँखें फिर भी
तपिश के कारण झुक जाती होगी
तीखी-तीखी दृष्टि सूर्य की
तुम पर ही पड़ जाती होगी

श्वेद तुम्हारा जाने कब
महुआ जैसा महक जाता होगा
मादक बन सूर्य को भी
अस्त हो ही जाना पड़ता होगा

मदभरी यह रातें लम्बी
गहरी आँखों से , फिर बातें कितनी करती होगी

एक कवि की प्रेयसी कभी-कभी
शायद ऐसी ही दिखती होगी

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शरद की प्रथम लहर से
जब देह तुम्हारी कम्पित होगी
एक आह मेरे हृदय से
उसी समय प्रस्फुटित होगी

शनैः शनैः जब कोहरा भी
आँचल बन छा जाता होगा
उस धुंधलके में फिर भी हमको
चेहरा तेरा दिखलाता होगा

पर तेरी लालिमा के उदय होते ही
कोहरा यूँ छ्ठ जाता होगा
शरद में भी ग्रीष्म का
आभास हमें हो जाता होगा

कुछ अवषेश कोहरे के
बस ओस बन यूँ ढुलक जाते होंगे
मोती बन तेरी आँखों के
भाग्य पर इतराते होंगे

और तुझे देखते ही कभी कभी
हिम पर भी ,अग्नि शिखा सी जल जाती होगी

एक कवि की प्रेयसी कभी कभी
शायद ऐसी ही दिखती होगी

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पतझड़ के आते ही
पल्लव सब गिर जाते होंगे
पुष्प भी बाट जोहते तेरी
जाने कब शून्य लोप हो जाते होंगें

शिकन तुम्हारे मुखमंडल पर
किंचित भी न आने देना
नव पुष्प फिर से खिलेंगे
आशा यह बांधे रखना

नयनो के पुष्प होंगे
अधरों के पल्लव होंगे
मेरे पतझड़ में फिर भी
तेरे यौवन के उपवन होंगे

इस यौवन को निहार निहार कर
ऋतु पतझड़ भी, जल जल जाती होगी

एक कवि की प्रेयसी कभी कभी
शायद ऐसी ही दिखती होगी

Photo by Chad Madden on Unsplash

ऋतुराज बसंत के आते ही
पुष्प यूँ खिल जाते होंगे
जैसे तेरे नयनो के दीप हो
बस ऐसे प्रज्ज्वलित हो जाते होंगे

सारी वाटिका बस तेरी ही
खुशभु से महक जाती होगी
पल्लव पल्लव,पुष्प पुष्प ,हर क्यारी
बस बात निराली कहती होगी

भ्रमर भी तेरे इर्द गिर्द
यूँ चक्कर लगाते होंगे
रसपान तेरी आभा का
करने के लिए छटपटाते होंगे

नव यौवना की तरह देह तुम्हारी
पुष्प आच्छादित, हो जाती होगी

एक कवि की प्रेयसी कभी कभी
शायद ऐसी ही दिखती होगी

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एक बूंद धारा पर गिरते ही
तेरी महक हवा में घुल जाती होगी
मन मयूर व्याकुल होगा
हृदय में टीस बढ़ जाती होगी

मेघ भी बूंद पानी को
तेरे निलय तक जाता होगा
निराश हो कभी वही पर
रो रो कर बाह जाता होगा

कोई प्रपात आता तुझको देख कर
फूट कहीं से पड़ता होगा
सरिता बन वही से फ़िर
पाने तुझको चलता होगा

एक दृष्टि तेरी पाते ही
सरिता में भी,जाने कब मदिरा घुल जाती होगी

एक कवि की प्रेयसी कभी कभी
शायद ऐसी ही दिखती होगी

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